जयपुर। पिछले माह भर्ती हुआ 11 साल के प्रिंस डेंगू से पीड़ित होने पर फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया था। ऐसी गंभीर स्थिति में कृत्रिम श्वास देने के लिए वेंटीलेटर पर भी जिन्दगी-मौत से लड़ने लगा। संतोकबा दुर्लभजी अस्पताल के डॉक्टरों की टीम वीवी एक्मो तकनीक से प्रिंस को बचाने में कामयाब रही।
डॉक्टरों का दावा है कि वीवी एक्मो तकनीक से बच्चे को डेंगू की गंभीर स्थिति से बचाने का पहले मामला है। अस्पताल की पीडियाट्रिक विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजीव बंसल ने शुक्रवार को मीडिया को बताया कि 19 सितंबर को 11 साल के प्रिंस को गंभीर डेंगू के चलते सवाईमाधोपुर से यहां पर रैफर किया गया। सात दिन बाद बुखार, पेट-दर्द, उल्टी, शरीर में सूजन और सांस लेने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था। जांच में डेंगू पॉजिटिव था और प्लेटलेट्स भी 20 हजार तक आ गई। इससे फेफड़ों में निमोनिया हो गया। जांच के दौरान दोनों फेफड़ों में हवा अंदर नहीं जा रही थी जिससे उसके शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगी थी।
क्या है वीवी एक्मो तकनीक
यह एक तरह से कृत्रिम फेफड़ों की तरह काम करती है। इसमें मरीज की नसों से खून खींचकर उसे मशीन द्वारा आक्सीफाई किया जाता है और फिर नसों में डाला जाता है। इसमें मरीज के शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बनी रहती है। अस्पताल के डॉ. रवि शर्मा व डॉ. नीरज शर्मा ने बताया कि डेंगू के मरीज को रक्तस्राव होने का अधिक खतरा रहता है।
इधर, मलेरिया की प्लाजमोडियम फेल्सीफेरम से 12 वर्षीय पीड़ित बालिका को भी जीवनदान मिला
शहर के कालवाड़ रोड़ स्थित मल्टी सुपरस्पेशलिटी क्रिटिकोनिक्स खंडाका हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने मलेरिया की पीएफ से पीड़ित 12 साल की बालिका का इलाज कर मौत के मुंह से बचाया है। अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. शिव कुमावत ने बताया कि अस्पताल में पिछले सप्ताह अचेत अवस्था में भर्ती करवाया गया था। मलेरिया के साथ-साथ पीलिया भी था। इसके अलावा प्लेटलेट्स भी लगातार गिर रहे थे। गंभीर स्थिति को देखते हुए आईसीयू में भर्ती कर निशुल्क इलाज करने का निर्णय लिया। अस्पताल के सीईओ डॉ. मनीष व्यास ने बताया कि सेरेब्रल मलेरिया और लीवर फेल्योर के ऐसे कम मामले देखने को मिलते है। मरीज की सूचना चिकित्सा विभाग को भी दे दी है।
पीवी से ज्यादा खतरनाक पीएफ : एसएमएस अस्पताल के डॉ. पुनीत सक्सेना ने बताया कि मलेरिया की प्रजाति प्लाजमोडियम वाइवेक्स की तुलना में प्लाजमोडियम फेल्सीफेरम ज्यादा खतरनाक होता है। गंभीर स्थिति के मामले में मरीज की मौत भी हो सकती है।